यूँ तो कई बार मुलाक़ात हुई कभी प्रार्थना में तो कभी सपनों में तो कभी-कभी डायरी के पन्नों में... ( अनुशीर्षक में पुरी कविता पढ़े ) कभी जो रुबरु होती आपसे तो निश्चय ही जता पाती खुद की नज़रों में आपके प्रति मेरा स्वार्थी भाव जो मुझे निस्वार्थ बनाता है इस पूरी दुनियां की नज़र में एक लक्ष्य जिसे पाना था