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कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे,लेकर दीये दो-चार। जाने क

कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे,लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी,करती मन में विचार।।
.
याद करके आँख भर आई,पिछली दीवाली त्योहार।
बिक न पाया आधा समान,चढ गया सर पर उधार।।
.
सोंच रही है अबकी बार,दूँगी सारे कर्ज उतार।
सजा रही है, सारे दीये करीने से बार बार।।
.
पास से गुजरते लोगों को देखे कातर निहार।
बीत जाए न अबकी दीवाली जैसा पिछली बार।।
.
नम्र निवेदन मित्रों जनों से,करता मैँ मनुहार।
मिट्टी के ही दीये जलाएँ,दीवाली पर इस बार।।
 आस कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे,लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी,करती मन में विचार।।
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याद करके आँख भर आई,पिछली दीवाली त्योहार।
बिक न पाया आधा समान,चढ गया सर पर उधार।।
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सोंच रही है अबकी बार,दूँगी सारे कर्ज उतार।
सजा रही है, सारे दीये करीने से बार बार।।
कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे,लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी,करती मन में विचार।।
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याद करके आँख भर आई,पिछली दीवाली त्योहार।
बिक न पाया आधा समान,चढ गया सर पर उधार।।
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सोंच रही है अबकी बार,दूँगी सारे कर्ज उतार।
सजा रही है, सारे दीये करीने से बार बार।।
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पास से गुजरते लोगों को देखे कातर निहार।
बीत जाए न अबकी दीवाली जैसा पिछली बार।।
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नम्र निवेदन मित्रों जनों से,करता मैँ मनुहार।
मिट्टी के ही दीये जलाएँ,दीवाली पर इस बार।।
 आस कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे,लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी,करती मन में विचार।।
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याद करके आँख भर आई,पिछली दीवाली त्योहार।
बिक न पाया आधा समान,चढ गया सर पर उधार।।
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सोंच रही है अबकी बार,दूँगी सारे कर्ज उतार।
सजा रही है, सारे दीये करीने से बार बार।।

आस कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे,लेकर दीये दो-चार। जाने क्या होगा अबकी,करती मन में विचार।। . याद करके आँख भर आई,पिछली दीवाली त्योहार। बिक न पाया आधा समान,चढ गया सर पर उधार।। . सोंच रही है अबकी बार,दूँगी सारे कर्ज उतार। सजा रही है, सारे दीये करीने से बार बार।।