मन मयूरा नाच उठा, देखकर इश्क़-ए-बहार। काबू में रहता नहीं, रहता है हर पल बेक़रार। चाहत की पुरवैया, जब बदन को भिगोने लगी। चहक उठा पागल ये, जैसे खिज़ा में आई बहार। 🌝प्रतियोगिता-129🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"मन मयूर"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I