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मैं हूँ शिक्षा की नगरी, जो रहती हूं हमेशा साफ-सुथर

मैं हूँ शिक्षा की नगरी,
जो रहती हूं हमेशा साफ-सुथरी,
यह कैसा दिन है आया, 
 हाय किसकी नजर लगी बुरी,
 करो ना है भाई परीक्षा की घड़ी,
मेरा दिल घबराता, कब खत्म होगी ये घड़ी,
घर बंदी से जी घबराया,
ये कैसा दिन है आया,
कोरोना है महामारी,
ये छूत की बीमारी,
ऐसे में घर से निकलना,
पड़ जाएगा भारी,
साबुन से हाथ धोना हैं जरूरी,
आपस मे बना के रखो थोड़ी दूरी,
पर मन की मन से मत रखना "पाराशर"
कभी भी तुम दूरी।
ज्योतिषाचार्य पं. अभिमन्यू पाराशर,
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान शिमला (झुंझुनूं)
9413723865 पाराशर:--कविता
मैं हूँ शिक्षा की नगरी,
जो रहती हूं हमेशा साफ-सुथरी,
यह कैसा दिन है आया, 
 हाय किसकी नजर लगी बुरी,
 करो ना है भाई परीक्षा की घड़ी,
मेरा दिल घबराता, कब खत्म होगी ये घड़ी,
घर बंदी से जी घबराया,
ये कैसा दिन है आया,
कोरोना है महामारी,
ये छूत की बीमारी,
ऐसे में घर से निकलना,
पड़ जाएगा भारी,
साबुन से हाथ धोना हैं जरूरी,
आपस मे बना के रखो थोड़ी दूरी,
पर मन की मन से मत रखना "पाराशर"
कभी भी तुम दूरी।
ज्योतिषाचार्य पं. अभिमन्यू पाराशर,
जलाराम बापा ज्योतिष संस्थान शिमला (झुंझुनूं)
9413723865 पाराशर:--कविता

पाराशर:--कविता