गुमनाम वफ़ा की चाहत में, अंजाम इश्क़ का क्या होगा। नफरतों का सौदा करने वाले, नाम इश्क़ का क्या होगा। लाख कोशिशें कर लो तुम, खुद को मुझसे दूर रखने की। खुद पे ऐतबार करने वाले, इंतक़ाम इश्क़ का क्या होगा। जितनी तौहीन करनी थी, तुमने तो खुलकर कर भी ली। अश्कों की चाहत करने वाले, बदनाम इश्क़ भी क्या होगा। साँसों की खुशबू में अगर, महबूब की खुशबू महसूस हो। हरपल महबूब का साथ हो, अरमान इश्क़ का क्या होगा। लफ़्ज़ों में बयाँ जो कर देते, हम अपनी चाहत की दास्ताँ। बात दिलों तक कैसे जाती, निशान इश्क़ का क्या होगा। जो कुछ भी था अपने हक़ का, हमने सबकुछ लुटा दिया। सारी खुशियाँ उनकी पा ली, अहसान इश्क़ का क्या होगा। ♥️ Challenge-699 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।