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भैजि ,सब छूट गया पेड़ो की छांव और घर के रास्ते छूट

भैजि ,सब छूट गया
पेड़ो की छांव और घर के रास्ते छूट  गए।
खेत छूट गए ,बचपन के दोस्त छूट गए ।
भैजि ,सब छूट गया ,रोजगार के चक्कर मे,
मूलभूत सुविधा के चक्कर मे,सब छूट गया।
जिन खेतो मे लहराते थी फसले ,आज वो बंजर हो गए।
जिस  मिट्टी मे रम कर खेला करते थे,वहां शूल उग गए।
घर के किवाड़ो पर झाड़ -झाड़िया उग गए।
भैजि ,सब छूट गया ,मेरी मजबूरी सिर्फ  दो रोटी की थी,
जिससे सब छूट गया।
पहाड़ो की सरसराती ठंडी हवा और कलकल आवाज करता हुआ ठंडा पानी।
घर के आंगन मे बैठकर लेते  चाय की चुस्कीया ।
काफल और हिसौले जैसे फल और बुरांस के फूल,
पेड़ो पर बैठी घुघूती की आवाज।
भैजि ,सब छूट गया ,रोजगार के चक्कर मे,
मूलभूत सुविधा के चक्कर मे,सब छूट गया।
प्रदेश मे रहकर पहाड़ मे बसे घर की याद आती है।
चूल्हे की रोटी -साग याद आती है।
क्या करू भैजि ,
क्या उगाऊ वहां,बेहिसाब जंगली जानवर हो गए वहाँ,
सरकार की आधी से ज्यादा स्कीम कागज पर रह गयी,
और रोजगार -शिक्षा के चक्कर मे मेरा पहाड़ छूट गया।
भैजि ,सब छूट गया ,रोजगार के चक्कर मे,
मूलभूत सुविधा के चक्कर मे,सब छूट गया।
31-12-2022

©Singh Anusha #भैजि ,सब छूट गया(कविता)
#भैजि :-बड़ा भाई या अपने से कोई बड़ा हो
#काफल,हिसौले:-पहाड़ी फल
#घुघूती :- एक पक्षी का नाम
anushasinghbisht8656

Anusha Bisht

Bronze Star
New Creator

#भैजि ,सब छूट गया(कविता) #भैजि :-बड़ा भाई या अपने से कोई बड़ा हो #काफल,हिसौले:-पहाड़ी फल #घुघूती :- एक पक्षी का नाम

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