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तुम जानते हो तुम मेरे क्या हो ? तुम मेरी आखिरी

तुम जानते हो
 तुम मेरे क्या हो ? 
 तुम मेरी आखिरी तलब नहीं
 तुम मेरी हर सुबह की
 पत्तों से  छनती आती धूप हो
जो एहसास दिलाती है  ,
 कि मैं हूँ मैं यहीं हूँ
 तुम दूर क्षितिज पे ढलती
 कोई शाम नहीं हो
तुम मेरे वजूद के ढले हो
ये पल पल पिघलता है और 
मैं कतरा कतरा जीती हूँ
तुम शहर का एक कोना नहीं
तुम यादों का पूरा शहर हो
जिसकी हर संकरी गली 
मेरी रूह तक पहुंचती है
तुम मेरे हाथों खालीपन नहीं
तुम मेरे व्यथित ह्रृदय का पूर्णता हो
तुम  महबूब नहीं  , माशूक  नहीं
और सुकून बहुत छोटा सा शब्द है
तुम मेरे अंदर "बौद्धिक" मन हो

©Anushka 🐼 #_इजहार 

#feellove
तुम जानते हो
 तुम मेरे क्या हो ? 
 तुम मेरी आखिरी तलब नहीं
 तुम मेरी हर सुबह की
 पत्तों से  छनती आती धूप हो
जो एहसास दिलाती है  ,
 कि मैं हूँ मैं यहीं हूँ
 तुम दूर क्षितिज पे ढलती
 कोई शाम नहीं हो
तुम मेरे वजूद के ढले हो
ये पल पल पिघलता है और 
मैं कतरा कतरा जीती हूँ
तुम शहर का एक कोना नहीं
तुम यादों का पूरा शहर हो
जिसकी हर संकरी गली 
मेरी रूह तक पहुंचती है
तुम मेरे हाथों खालीपन नहीं
तुम मेरे व्यथित ह्रृदय का पूर्णता हो
तुम  महबूब नहीं  , माशूक  नहीं
और सुकून बहुत छोटा सा शब्द है
तुम मेरे अंदर "बौद्धिक" मन हो

©Anushka 🐼 #_इजहार 

#feellove