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रोशनी उम्मीदों की, दिया सी छोटी मगर, घने अंधेरे को

रोशनी उम्मीदों की,
दिया सी छोटी मगर,
घने अंधेरे को भी मात देती है,
अकेला हो कितना भी,
मगर हिम्मत से चलने की बात देती है।

कहाँ जिंदगी फूलों से सजी मिली है किसी को यहाँ,
कांटो में फूलों से मिलने को ही,
जिंदगी ने अपने दामन में,
ज़ीस्ते इलहाम देती है।

ये ज़ख्म,
ये रक्त-रंजित घाव,
निशान असफलता के,
सफ़र में यूँ ही जिंदगी इनाम देती है,
रोशनी उम्मीदों की,
दिया सी छोटी मगर,
घने अंधेरे को भी मात देती है,
अकेला हो कितना भी,
मगर हिम्मत से चलने की बात देती है।

©Prashant Roy
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