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बेजुबान--- वालिद आसिफ @अख्तर मंदी हुई सी आँखे थी

बेजुबान--- वालिद 
आसिफ @अख्तर 
मंदी हुई सी आँखे थी ओर मुड़ी हुई सी उंगलियाँ थी, ये अहसास-ए-बयाँ तब का हे,जब दूनियाँ मेरे लिये सोयी हुई थी ।
चुपके से---चुपके से  मेरे पास वो आता था ओर धीरे से मेरी बन्द मुट्ठी में उसकी उँगली जमाता था , कभी सिने से लगाता था, तो कभी नंगे बदन पर नया कपड़ा वो  पहनाता था , त्योहार व्योहार की समझ ना थी मुझे फिर भी हर त्योहार मेरे साथ मनाता था , कभी ईद पर छोटे- छोटे कुर्ते वो सिलवाता था तो कभी होली पर रंग बिरंगी पिचकारी वो दिलवाता था
वो बाप ही तो था जो मुझें सुबह की पहली किरण ओर ढलती शाम से मिलवाता था ।

घर में खाने के लाले थे फिर भी  FD में पेसा जोडता था , खुद के सपनों को अधूरा रखकर मेरे सपनों के बारें में सोचता था ,कभी झुलो में झुलाता तो कभी करतब दिखाता था, व्क़्त का----वक़्त का सिलसिला इस तरह बदल रहा था , की वो अपनी उम्र घटा कर मेरी उम्र बडा रहा था ।
मेरे चेहरे का नूर ओर अपनी  झुर्रिया साथ में बडा रहा था, मुझें नये नये कपडों से तो खुद को पुरानो से सजा रहा था, वो बाप ही तो था जो मुझें दरख्त के सबसे उँचे पतौ से मिलवा रहा था , फिर भी मे उसे परेशान करने में कोई कसर नही छोड रहा था ,चाहे रातों को जगाना हो या बिस्तर को गीला करना हो, फिर भी वो मेरी खुशी के लिये कभी घोड़ा तो कभी हाथी बन रहा था । 

अल्फजो से--- अल्फज़ो से तो गूँगा था में फिर भी वो मेरे इशारे समझ रहा था, में आज भी हेरान हूँ इस बात से की वो मेरे लिये अकेला सब कुछ केसे कर रहा था ,अरे----अरे वो बाप ही तो था जो मेरी दी हुई परेशानियों को अपने गुलशन का गुल समझ रहा था ।
व्क़्त का पहियाँ आगे बडा में भी अब उसे समझने लगा था उसके रंग में ढलने लगा था ओर रोज उसके ऑफ़िस से आने का इन्तजार करने लगा था क्योकि अब वो मुझें बाप नहीं जिंदगी का सबसे सुकून भरा पल लगने लगा था, उसकी घर मे दस्तक को मह्सूस करने लगा लगा था ओर उसके आने के इन्तजार में वाकर से इधर-उधर झाकने लगा था ।
व्क़्त कटा तो में अब जवानी की दहलीज पर कदम रखने लगा था, उसके प्यार ओर समर्पण को उसका फर्ज समझने लगा था , अब उसका मेरे लिये रातों को जगना ओर मेरे लिये कभी हाथी तो कभी घोड़ा बनना कहाँ याद आ रहा था, उसका मेरे लिये पूरी रात एक करवट में सोना भी में भूलने लगा था ,अपनी जवानी के आगे उसकी नसीहतों को बचपना समझने लगा था ।
 अब व्क़्त के साथ मेरी फितरत वो समझने लगा था अब बेटा बाप से क्या बाप बेटे से डरने लगा था ।

माना कि आज तुम मसरूफ हो ओर वो उम्रदराज हे--लेकिन  बाप से ही हर नये दिन की सुबाह ओर शाम हे, बाप हे तो बाजार के हर खिलौने अपने हे ओर बाप हे तो सभी सपनें अपने हे ।
माना कि वो आज हयात हे लेकिन कल वो नहीं होगा,फिर कल से उसके आने का इन्तजार नही होगा । मत भूलो उसकी नसीहतों को इतनी आसानी से पाना चाहतें हो अगर असल जन्नत को तो वो ही कल जन्नत का सरदार होगा-----वही जन्नत का सरदार होगा । बेजुबान।।।।।#।।।वालिद 
part/05/23/02/2020
आसिफ @अख्तर
बेजुबान--- वालिद 
आसिफ @अख्तर 
मंदी हुई सी आँखे थी ओर मुड़ी हुई सी उंगलियाँ थी, ये अहसास-ए-बयाँ तब का हे,जब दूनियाँ मेरे लिये सोयी हुई थी ।
चुपके से---चुपके से  मेरे पास वो आता था ओर धीरे से मेरी बन्द मुट्ठी में उसकी उँगली जमाता था , कभी सिने से लगाता था, तो कभी नंगे बदन पर नया कपड़ा वो  पहनाता था , त्योहार व्योहार की समझ ना थी मुझे फिर भी हर त्योहार मेरे साथ मनाता था , कभी ईद पर छोटे- छोटे कुर्ते वो सिलवाता था तो कभी होली पर रंग बिरंगी पिचकारी वो दिलवाता था
वो बाप ही तो था जो मुझें सुबह की पहली किरण ओर ढलती शाम से मिलवाता था ।

घर में खाने के लाले थे फिर भी  FD में पेसा जोडता था , खुद के सपनों को अधूरा रखकर मेरे सपनों के बारें में सोचता था ,कभी झुलो में झुलाता तो कभी करतब दिखाता था, व्क़्त का----वक़्त का सिलसिला इस तरह बदल रहा था , की वो अपनी उम्र घटा कर मेरी उम्र बडा रहा था ।
मेरे चेहरे का नूर ओर अपनी  झुर्रिया साथ में बडा रहा था, मुझें नये नये कपडों से तो खुद को पुरानो से सजा रहा था, वो बाप ही तो था जो मुझें दरख्त के सबसे उँचे पतौ से मिलवा रहा था , फिर भी मे उसे परेशान करने में कोई कसर नही छोड रहा था ,चाहे रातों को जगाना हो या बिस्तर को गीला करना हो, फिर भी वो मेरी खुशी के लिये कभी घोड़ा तो कभी हाथी बन रहा था । 

अल्फजो से--- अल्फज़ो से तो गूँगा था में फिर भी वो मेरे इशारे समझ रहा था, में आज भी हेरान हूँ इस बात से की वो मेरे लिये अकेला सब कुछ केसे कर रहा था ,अरे----अरे वो बाप ही तो था जो मेरी दी हुई परेशानियों को अपने गुलशन का गुल समझ रहा था ।
व्क़्त का पहियाँ आगे बडा में भी अब उसे समझने लगा था उसके रंग में ढलने लगा था ओर रोज उसके ऑफ़िस से आने का इन्तजार करने लगा था क्योकि अब वो मुझें बाप नहीं जिंदगी का सबसे सुकून भरा पल लगने लगा था, उसकी घर मे दस्तक को मह्सूस करने लगा लगा था ओर उसके आने के इन्तजार में वाकर से इधर-उधर झाकने लगा था ।
व्क़्त कटा तो में अब जवानी की दहलीज पर कदम रखने लगा था, उसके प्यार ओर समर्पण को उसका फर्ज समझने लगा था , अब उसका मेरे लिये रातों को जगना ओर मेरे लिये कभी हाथी तो कभी घोड़ा बनना कहाँ याद आ रहा था, उसका मेरे लिये पूरी रात एक करवट में सोना भी में भूलने लगा था ,अपनी जवानी के आगे उसकी नसीहतों को बचपना समझने लगा था ।
 अब व्क़्त के साथ मेरी फितरत वो समझने लगा था अब बेटा बाप से क्या बाप बेटे से डरने लगा था ।

माना कि आज तुम मसरूफ हो ओर वो उम्रदराज हे--लेकिन  बाप से ही हर नये दिन की सुबाह ओर शाम हे, बाप हे तो बाजार के हर खिलौने अपने हे ओर बाप हे तो सभी सपनें अपने हे ।
माना कि वो आज हयात हे लेकिन कल वो नहीं होगा,फिर कल से उसके आने का इन्तजार नही होगा । मत भूलो उसकी नसीहतों को इतनी आसानी से पाना चाहतें हो अगर असल जन्नत को तो वो ही कल जन्नत का सरदार होगा-----वही जन्नत का सरदार होगा । बेजुबान।।।।।#।।।वालिद 
part/05/23/02/2020
आसिफ @अख्तर
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