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बीती कुछ रातों से वो, ​सोच रही थी, ​यादें अपनी, बं

बीती कुछ रातों से वो,
​सोच रही थी,
​यादें अपनी,
बंद ​पलकें दुःस्वप्न से भर गयीं,
​उन्नींदी उसकी उचट गयी,
​कुछ दहलीज से जाते पाँव,
​और..,
​छूटते हाथों से रिश्तों के नाम,
​चाहती थी वो,
​कोई हौले से पुकारे,
​जाने से पहले,
​लेकिन..,
​दिखने लगी उसे,
​चौखट पर ब्याह मे लगाये,
​अपने हल्दी वाले शगुन के हाथ,
​और..भीगी पलकें उदास, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#मातृपक्ष

​बीती कुछ रातों से वो,
​सोच रही थी,
​यादें अपनी,
बंद ​पलकें दुःस्वप्न से भर गयीं,
बीती कुछ रातों से वो,
​सोच रही थी,
​यादें अपनी,
बंद ​पलकें दुःस्वप्न से भर गयीं,
​उन्नींदी उसकी उचट गयी,
​कुछ दहलीज से जाते पाँव,
​और..,
​छूटते हाथों से रिश्तों के नाम,
​चाहती थी वो,
​कोई हौले से पुकारे,
​जाने से पहले,
​लेकिन..,
​दिखने लगी उसे,
​चौखट पर ब्याह मे लगाये,
​अपने हल्दी वाले शगुन के हाथ,
​और..भीगी पलकें उदास, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे 

#मातृपक्ष

​बीती कुछ रातों से वो,
​सोच रही थी,
​यादें अपनी,
बंद ​पलकें दुःस्वप्न से भर गयीं,
akalfaaz9449

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