बीती कुछ रातों से वो, सोच रही थी, यादें अपनी, बंद पलकें दुःस्वप्न से भर गयीं, उन्नींदी उसकी उचट गयी, कुछ दहलीज से जाते पाँव, और.., छूटते हाथों से रिश्तों के नाम, चाहती थी वो, कोई हौले से पुकारे, जाने से पहले, लेकिन.., दिखने लगी उसे, चौखट पर ब्याह मे लगाये, अपने हल्दी वाले शगुन के हाथ, और..भीगी पलकें उदास, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #मातृपक्ष बीती कुछ रातों से वो, सोच रही थी, यादें अपनी, बंद पलकें दुःस्वप्न से भर गयीं,