चल पड़ा था छांव की तलाश मे, अनसुलझे लंबे रस्तों पर, थक कर भी अब, नींद जैसे आती नहीं! हालात-ए इस कदर, दवा भी असर ना करे,, प्यासे बहुत है मगर, जान भी अब जैसे जाती नहीं!! लिबास बदल गया रहने-करने का, ख्वाबों से अब उसकी, भीतरी यादें जाती नहीं! खयाली कहानियों से बनाया था मैंने अपना एक घर,, खंडर ही रह गया, उसके अवशेष भी अब जेसे बाकी नहीं!! औकात जान लेनी चाहिए या फूटी किस्मत का ऐसा बुरा असर, कहा करती थी वो, मेरे बिना एक पल रह पाती नहीं! जला दिया एक दिन, अपने ही पन्नों को आंखे पसीज कर,, बहुत ढूँढा, मगर राख भी अब जेसे बाकी नहीं!! Thanks for poked fabulousme