लघुकथा मुस्कुराहटों की कोई कीमत होती है क्या? ******************************** अनुशीर्षक में पढ़ें 👇👇👇👇👇 लघुकथा मुस्कुराहटों की कोई कीमत होती है क्या? ******************************** एक शहर का लड़का रोहित, कुछ दिन बताने के लिए गांव हमीरपुर गया। शहर की आबोहवा से परेशान हूं कुछ दिन गांव में बिताना चाहता था। गांव में आंकर उसकी पहचान एक लड़की सांवली से हुई। वो लड़की हवेली की देखभाल करती थी। बिगड़ैल रोहित को सांवली एक आंख ना भाती थी, रोहित को अपने पैसे का बहुत अभिमान था और सांवली गरीब परिवार से थी। !..पर कहते है ना, एक मासूमियत भरी मुस्कराहट सब गम भुला देती है। ठीक वैसे सांवली की मुस्कान, सबकी ख़ुशी की चाबी थी। एक दिन रोहित बड़ा बेचैन था, सांवली भी नहीं आई, वो व्याकुल हो उठा, और पागलों की तरह सांवली को ढूंढने लगा। बड़े दिनों के बाद जब सांवली हवेली आई तुम उसके भड़क उठा और कहने लगा कहां थी इतने दिन। तब विनम्र आवाज में सांवली ने कहा हम बाबा की सेवा में व्यस्त थे इसलिए नहीं आ पाए, रोहित बाबू आपको हमसे क्या काम था आप ठहरे अमीर बाबू आपको बोला हम गरीब से क्या काम। तब रोहित ने कहा पगली शहर में जो सुकून ना मिल सका वह गांव की एक भोली मुस्कान में मिला। जो चीज पैसों से नहीं खरीदी जा सकती वह सकूं तेरी मधुर मुस्कान में मिला। किसी ने सच ही कहा है