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जश्न मना रहे थे जश्न हम सब आजादी का आत्मा मेरी क

जश्न  मना रहे थे जश्न हम सब आजादी का 
आत्मा मेरी कहकर यह चीत्कार उठी 
आजाद कहा हूँ मैं? मैं विद्रोह करने को तैयार बैठी 
न खाने की आजादी न पहनने की 
न उठने की आजादी न बैठने  
तालीमो की खान हूँ मैं आज भी गुलाम हूँ 
अपना अनकहा गुस्सा दिखा रही थी मैं 
पास में बैठी एक अम्मा मेरी बातो से मुस्कुरा रही थी 
मैंने वेबाकी से कहा हुआ क्या जो इतरा रही हो 
आप अजीब सी हंसी क्यो हंसे जा रहे हो 
थोड़ा सौम्य और सहजता से वो बोली 
तू अभी नदान है इसलिए इन बातो को गुलामी बोली 
मेट्रिक पास मैं उस उम्र की हूँ    मैं आज आजाद हूँ इसलिए गुलामी नही भूली 
वो बुरका मेरी अम्मी की पहचान थी वो घूघट मेरे ससुर की शान थी 
 वो जड़ो में सब्जी खुद ही  सुबह लाते थे   
परेशान न हूँ मैं इसलिए खुद बच्चो को स्कूल छोड़ आते थे  
उनकी दासी होना सौभाग्य समझती हूँ  
मैं आज भी इस आजादी में उनकी  प्रेम कैद को तरसती हूँ  
अब्बा मेरे  मुझे उठने बैठने के साथ तरीका भावनाओ का सीखाते थे 
 मैं सुंदर लगी इसलिए माँ से गोटे वाली चुनर मगवाते थे 
उनकी लाड़ली बनकर मैं सबकी जान थी 
अगर बात मनना है गुलामी तो उस गुलामी के हम भी गुलाम थे 
माथे पर माँग टीका सजाकर जब सास मेरी दुआओ देकर मुस्कुराती थी 
उनकी दी वो साड़ी मेरी मान कहलाती थी 
वो राखी पर आये न आये पर ज्नमदिन पर तोहफा जूरूर लाते थे 
भाई मुझे गुलाम बनाकर ही इतराते थे 
 वो सुनाने हर किस्सा मुझे दफ्तर का जब जल्दी घर आते थे 
 यही सोचकर मेरे कदम चाय बनाने किचन तक अपने आप चले जाते थे  
उनके सपनो को इंसान बनाने मैं सपनो को क्या खुद को भी छोड़कर मुस्कुराती हूँ 
उनकी बच्चो की माँ बनकर मैंअफसर होने से ज्यादा धौक जमाती हूँ 
   आज भी अपने पौधो की साख पर मुस्कुराती हूँ 
मैं गुलाम बनकल आज अपनी भावनाओं की ठगी सी रह जाती हूँ 
तामीजो और संस्कारो से गुलाम होना बड़प्पन है 
 आजाद होना है खुदगर्जी से आजाद हो जाओ 
तुम ज्येठ के टिसु बन जाओ 
विद्रोह करना है तो अन्याय का करो भवनाओ का नही  
मचलते समाज की नींव वना सकती हो तुम इस गुलामी में जीकर  बिना विद्रोह के क्रांति ला सकती हो 
 जो आजाद होकर दिन भर तुम्हारे प्रेम  की आह भरते है  
क्या वो चेहरे तुमको आजाद दीखते है  
 

 #NojotoQuote
जश्न  मना रहे थे जश्न हम सब आजादी का 
आत्मा मेरी कहकर यह चीत्कार उठी 
आजाद कहा हूँ मैं? मैं विद्रोह करने को तैयार बैठी 
न खाने की आजादी न पहनने की 
न उठने की आजादी न बैठने  
तालीमो की खान हूँ मैं आज भी गुलाम हूँ 
अपना अनकहा गुस्सा दिखा रही थी मैं 
पास में बैठी एक अम्मा मेरी बातो से मुस्कुरा रही थी 
मैंने वेबाकी से कहा हुआ क्या जो इतरा रही हो 
आप अजीब सी हंसी क्यो हंसे जा रहे हो 
थोड़ा सौम्य और सहजता से वो बोली 
तू अभी नदान है इसलिए इन बातो को गुलामी बोली 
मेट्रिक पास मैं उस उम्र की हूँ    मैं आज आजाद हूँ इसलिए गुलामी नही भूली 
वो बुरका मेरी अम्मी की पहचान थी वो घूघट मेरे ससुर की शान थी 
 वो जड़ो में सब्जी खुद ही  सुबह लाते थे   
परेशान न हूँ मैं इसलिए खुद बच्चो को स्कूल छोड़ आते थे  
उनकी दासी होना सौभाग्य समझती हूँ  
मैं आज भी इस आजादी में उनकी  प्रेम कैद को तरसती हूँ  
अब्बा मेरे  मुझे उठने बैठने के साथ तरीका भावनाओ का सीखाते थे 
 मैं सुंदर लगी इसलिए माँ से गोटे वाली चुनर मगवाते थे 
उनकी लाड़ली बनकर मैं सबकी जान थी 
अगर बात मनना है गुलामी तो उस गुलामी के हम भी गुलाम थे 
माथे पर माँग टीका सजाकर जब सास मेरी दुआओ देकर मुस्कुराती थी 
उनकी दी वो साड़ी मेरी मान कहलाती थी 
वो राखी पर आये न आये पर ज्नमदिन पर तोहफा जूरूर लाते थे 
भाई मुझे गुलाम बनाकर ही इतराते थे 
 वो सुनाने हर किस्सा मुझे दफ्तर का जब जल्दी घर आते थे 
 यही सोचकर मेरे कदम चाय बनाने किचन तक अपने आप चले जाते थे  
उनके सपनो को इंसान बनाने मैं सपनो को क्या खुद को भी छोड़कर मुस्कुराती हूँ 
उनकी बच्चो की माँ बनकर मैंअफसर होने से ज्यादा धौक जमाती हूँ 
   आज भी अपने पौधो की साख पर मुस्कुराती हूँ 
मैं गुलाम बनकल आज अपनी भावनाओं की ठगी सी रह जाती हूँ 
तामीजो और संस्कारो से गुलाम होना बड़प्पन है 
 आजाद होना है खुदगर्जी से आजाद हो जाओ 
तुम ज्येठ के टिसु बन जाओ 
विद्रोह करना है तो अन्याय का करो भवनाओ का नही  
मचलते समाज की नींव वना सकती हो तुम इस गुलामी में जीकर  बिना विद्रोह के क्रांति ला सकती हो 
 जो आजाद होकर दिन भर तुम्हारे प्रेम  की आह भरते है  
क्या वो चेहरे तुमको आजाद दीखते है  
 

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