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जाति धर्म के अब भी गढ़,उलझ रहे अब भी अनपढ़, ढूंढ र

जाति धर्म के अब भी गढ़,उलझ रहे अब भी अनपढ़,
ढूंढ रहा हूँ मैं गणतंत्र,दिखता क्यों मुझे गढ़ तंत्र!

चारों तरफ फैली बीमारी,नाम है जिसका भ्रष्टाचारी,
रहा न कोई अब गणतंत्र,रचते अब तो गिन -गिन तंत्र।

इकहत्तर साल हुए है अब,रचे हुए संविधान को
मिलते हैं संसद में भी अब,समझे नहीं जो संविधान को।

होता है अब शोर शराबा,संसद के गलियारों में,
कहते कुछ और करते कुछ हैं,बिक रहा गणतंत्र बाजारों में।

उठो अब नौजवानों,आंखें खोलने का वक्त ये है।
सिर्फ गणतंत्र दिवस पर जागना ,ये नही कोई देशभक्ति है।

- सुमित खमार

 Happy Republic Day To All
जाति धर्म के अब भी गढ़,उलझ रहे अब भी अनपढ़,
ढूंढ रहा हूँ मैं गणतंत्र,दिखता क्यों मुझे गढ़ तंत्र!

चारों तरफ फैली बीमारी,नाम है जिसका भ्रष्टाचारी,
रहा न कोई अब गणतंत्र,रचते अब तो गिन -गिन तंत्र।

इकहत्तर साल हुए है अब,रचे हुए संविधान को
मिलते हैं संसद में भी अब,समझे नहीं जो संविधान को।

होता है अब शोर शराबा,संसद के गलियारों में,
कहते कुछ और करते कुछ हैं,बिक रहा गणतंत्र बाजारों में।

उठो अब नौजवानों,आंखें खोलने का वक्त ये है।
सिर्फ गणतंत्र दिवस पर जागना ,ये नही कोई देशभक्ति है।

- सुमित खमार

 Happy Republic Day To All
khamarsumit5769

Khamar Sumit

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