बस और होली होली से एक दिन पहले हुए सवार बस में जालोर से। थी सवारियाँ भरी हुई बस में खचाखच दोनो ओर से।। कर्मभूमि से जन्मभूमि जाने का उत्साह कम ना था, भरी हुई थी बस, मगर रंग खून का कम ना था । सफर तय करते हुए, आ पहुँचे गुलाबी शहर, लिया ऑटो का सहारा, पहुँचने को रामगढ़ मोड़, पहुँचे वहाँ, जहाँ से गाँव जाने वाली बस की है डगर । सवारियों के मन में थी होली के रंग में रंगने की होड़। आठ बजे की बस दो घण्टे पहले ही भर गई दोनो छोर से। थी सवारियाँ भरी हुई बस में खचाखच दोनो ओर से।। थी महिलाएँ बेचैन भीड़ में, लिए हुए गोदी में प्रहलाद को, कहीं गुस्सा था चेहरे पर, कहीं घूरती हुई नजरे प्रसाद को। नौंक-झौंक भी चली सवारी और परिचालक के बीच में, हुआ उठा के नीचे फेंकने का वाद, चढ़ती हुई भीड़ में। धीरे-धीरे चल रही थी बस, चरमरा रहे थे टायर जोर से, मेरे पैसे वापस नहीं दिए, आवाज दब गई भीड़ के शोर से। हिचकोले खाते हुए पहुँच गए अपने गाँव जालोर से। थी सवारियाँ भरी हुई बस में खचाखच दोनो ओर से।। बस और होली होली से एक दिन पहले हुए सवार बस में जालोर से। थी सवारियाँ भरी हुई बस में खचाखच दोनो ओर से।। कर्मभूमि से जन्मभूमि जाने का उत्साह कम ना था, भरी हुई थी बस, मगर रंग खून का कम ना था । सफर तय करते हुए, आ पहुँचे गुलाबी शहर, लिया ऑटो का सहारा, पहुँचने को रामगढ़ मोड़,