ए इश्क तेरे नाज़ उठाकर तड़पते हुए,बस तुझे देखकर हरहाल मे मुस्कुराते रहे//१
सारे परवाने शमा से ही लड़कर उड़ते हुए,बस उसके जिंदा दिल को जलाते रहे//
कितने तूफ़ान हम चराग़ों से,देखते हुए,बस अपनी हयात को,इश्क में आज़माते रहे//
चश्म से अश्क किस लिए बहते हुए,बारहा बस जो पूछा*अख्तर को,तो सकुचाते रहे//४ *तारा
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