एक छुपी हुई पहचान रखता हूँ, बाहर शांत हूँ, अंदर तूफान. रखता हूँ, रख के तराजू में अपने दोस्त की खुशियाँ, दूसरे पलड़े में मैं अपनी जान रखता हूँ। मुर्दों की बस्ती में ज़मीर को ज़िंदा रख कर, ए जिंदगी मैं तेरे उसूलों का मान रखता हूँ। ©Ashish Yeolekar #AWritersStory dhyan mira