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अँधेरे में जो चला हैं बिना डर समझो वह तर गया भवसाग

अँधेरे में जो चला हैं बिना डर
समझो वह तर गया भवसागर।
अद्वैत का प्रतीक हैं समझो अंधेरा
जहां मिट जाता हैं सब तेरा मेरा
दिन में चीजें देख मन में भरता अहंकार
रात के अँधेरे में नश्वर लगता ये संसार।

©Kamlesh Kandpal
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