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खुमार-ए-इश्क़ की, जब-जब उठती है तलब, शर्माती है आँ

खुमार-ए-इश्क़ की,
जब-जब उठती है तलब,

शर्माती है आँखे,
बेइन्तहा मुस्कुराते है लब ।
खुमार-ए-इश्क़ की,
जब-जब उठती है तलब,

शर्माती है आँखे,
बेइन्तहा मुस्कुराते है लब ।