अरे नादान तु जग में कहाँ आत्म शांति खोजता, क्षण भर बैठ माता - पिता के चरणों मे यँहा स्वर्ग सा सुंदर है लगता। अरे स्वार्थ की सेवा है तू नित दिन करता, रख निस्वार्थ मन पितृत्व व मातृत्व कृपा से तो भाग्य तेरा ही बदलता। अनमोल खजाने है ये दो तेरे आंगन मे जानकर भी तू अनजान है क्यों बनता। ज़माने से ना सिख कद्र मात - पिता की है वो कैसे करता । ख़ुद ही तोल कर उनके उपकारों का अपनी बरकत से सत्य का साहूकार तू फिर क्यों नही बनता । अपनों से दूरियां और परायो से स्नेह है तू रखता।रहमत खुदा कि हो भी कैसे तुझ पर, तु स्वंय ही अपना नसीब है लिखता। अरे नादान तू जग में कंहा आत्म शांति है खोजता क्षण भर बैठ मात - पिता के चरणों मे यँहा स्वर्ग सा सुंदर है लगता। ✍✍ विक्रम सिंह पंवार अरे नादान तू जग में कँहा शांति खोजता।