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आजाद हूं और आजाद होकर भी बंधी हूं कहीं न कहीं जम

आजाद हूं 
और आजाद होकर भी 
बंधी हूं
कहीं न कहीं जमाने की बेड़ियों में 
कभी कभी दुबक जाती हूं 
इन बेड़ियों के पीछे 
ताकि बेड़ियों की पकड़ से ढीली होकर 
कही गिर न जाऊं मैं 
उस कुएं में 
जिसे जमाने ने खोदा  है 
सिर्फ लड़कियों के लिए...
आजाद हूं 
और आजाद होकर भी 
बंधी हूं
कहीं न कहीं जमाने की बेड़ियों में 
कभी कभी दुबक जाती हूं 
इन बेड़ियों के पीछे 
ताकि बेड़ियों की पकड़ से ढीली होकर 
कही गिर न जाऊं मैं 
उस कुएं में 
जिसे जमाने ने खोदा  है 
सिर्फ लड़कियों के लिए...