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White कभी धड़ाक से बोलने जैसा कभी सहम कर ठहर जाने ज

White कभी धड़ाक से बोलने जैसा
कभी सहम कर ठहर जाने जैसा
कभी बेबुनियाद शर्तो पे जीते रहना
कभी बेखौफ परिंदों सा हो जाना

         बस ये जीनव इतना सरल हो जाता,

मन के अंधियारों से खामोशी के सन्नाटों तक
जब विचलित ह्रदय कहीं ना टीक पाता
एक लम्बी सैर पे खुद के पैर पे
संग में डायरी और पानी की बॉटल
फिर कभी ना लौटकर आती

              बस ये जीवन इतना सरल हो जाता,

सूनी सड़कों पे कदम रखने जैसा
हॉस्पिटल के बगल से गुजरने जैसा
भीड़ में जोर का धक्का जैसे लगता
फिर संभल-संभल कर चलने जैसा
 
               बस जीवन इतना सरल हो जाता,

नदियों का शोर समुंदर की खामोशी सुनती
बुजुर्गों के संग चाय की चुस्की लेती
रेत से जैसें बालू उड़ जाए
आकाश में जैसें पतंग उछाली जाए

मैं नींद से तड़पडा कर उठती
और ये ख्वाब मुक्कमल हो जाए

          बस ये जीवन इतना ही सरल हो जाता।
                                             
                                              माधवी मधु

©madhavi madhu
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