दुनिया झूठ की हुई तबसे बचपन छोड़ जवानी आई जबसे ख़ुद को झूठ के आवरण में ढक लिया मैंने बनावटी ज़िन्दगी दिखाने में दूर हो गया सबसे दिल में फ़रेब ने दे दिया दस्तक सच से नज़रें चुराने लगा मेरा मन अब ना कोई उम्मीद ना गिला ना कोई शिकवा जब अपने ही लोगों को मौकापरस्त होते देखा दुनिया के झूठ के तपिश में ख़ुद को झुलसा लिया उसके धूप से बचने के सच का सच का साया कर लिया ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1094 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।