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सुबह की लाली निकल गयी रोटियां पोटली मे बंधकर हाथो

सुबह की लाली निकल गयी
रोटियां पोटली मे बंधकर हाथो मे आ गयी
एक नई आस मे चल पड़े
जिंदगी का पड़ाव पार करने
चलते चलते फिर पापी पेट की याद आ गयी

सर पर धरा मजबूरीयों का टोकरा
फिर बच्चों की याद सता गयी
उनकी मासूम चेहरे अभावों का बचपन
फिर मुझे रुला गयी

माँ बाप की करहती हुई बोली
दवाई के अभाव मे फिर उदास कर गयी
सर पर धरा मजबूरियों का टोकरा
फिर उनकी याद आ गयी

ढलती दुपहरी दलती शाम
बच्चों की जरूरतें फिर याद आ गयी
शाम की लाली छा गयी
फिर खाने की खाली पोटली फिर हाथो मे आ गयी

याद करता वो घर का सामान
खिल्लोंने बच्चों की
जर्जर वो माँ बाप की दवा
जिम्मेदारी के बोझ से सब याद आ गयी

कर रहा हूँ हर जरूरत पूरी
फिर मजबूरी से जिम्मेदारी याद आ गयी

राजोतिया भुवनेश

©Rajotiya Bhuwnesh jangir #swal #jimmedariyo ka 

#Memories
सुबह की लाली निकल गयी
रोटियां पोटली मे बंधकर हाथो मे आ गयी
एक नई आस मे चल पड़े
जिंदगी का पड़ाव पार करने
चलते चलते फिर पापी पेट की याद आ गयी

सर पर धरा मजबूरीयों का टोकरा
फिर बच्चों की याद सता गयी
उनकी मासूम चेहरे अभावों का बचपन
फिर मुझे रुला गयी

माँ बाप की करहती हुई बोली
दवाई के अभाव मे फिर उदास कर गयी
सर पर धरा मजबूरियों का टोकरा
फिर उनकी याद आ गयी

ढलती दुपहरी दलती शाम
बच्चों की जरूरतें फिर याद आ गयी
शाम की लाली छा गयी
फिर खाने की खाली पोटली फिर हाथो मे आ गयी

याद करता वो घर का सामान
खिल्लोंने बच्चों की
जर्जर वो माँ बाप की दवा
जिम्मेदारी के बोझ से सब याद आ गयी

कर रहा हूँ हर जरूरत पूरी
फिर मजबूरी से जिम्मेदारी याद आ गयी

राजोतिया भुवनेश

©Rajotiya Bhuwnesh jangir #swal #jimmedariyo ka 

#Memories