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बावरे मन की उलझन न सुलझे समझाऊँ तो समझाऊं मैं कै



बावरे मन की उलझन न सुलझे समझाऊँ तो समझाऊं मैं कैसे
परेशानियां हैं कि बढ़ती ही जाती हैं इन्हें कम करूं तो मैं कैसे
भंवर में फंसी है मेरी जीवन नैया पार उतारूं तो उतारुं मैं कैसे 
राहों में चलना हुआ मेरा मुश्किल मंजिल तक पहुंचूं तो मैं कैसे 
उलझन में उलझा रहता मेरा मन उलझन से निकलूं तो मैं कैसे 
ना कोई संगी ना साथी हाले दिल किसको सुनाऊं और मैं कैसे 
रहती ही नहीं है सुध बुध हमें अब किस को बताऊं और मैं कैसे 
जिम्मेदारियां निभाने में जीवन गुजरता मन की करूं तो मैं कैसे 
दिल सुलगता है और आहें भी भरता है इसको मनाऊं तो मैं कैसे 
मुश्किल भरी राहों में हैं हरदम अंधेरे दिए गर जलाऊं तो मैं कैसे 
मन की उलझन हरपाल डंसती ही रहती है इससे बचूं तो मैं कैसे 
उलझनों के संग रहकर जीना हुआ मुश्किल अब जिऊं तो मैं कैसे
कोई तो बता दो,कोई तो सीखा दो,उलझनों से उबारों हमें चाहे जैसे। #मन_की_उलझन_team_alfaz #newchallenge

There is new challenge of poem/2 line/4 line in whatsapp group (link in bio)
Today's Topic is 

*मन की उलझन*

Any writer can write anything but *remember the rule*


बावरे मन की उलझन न सुलझे समझाऊँ तो समझाऊं मैं कैसे
परेशानियां हैं कि बढ़ती ही जाती हैं इन्हें कम करूं तो मैं कैसे
भंवर में फंसी है मेरी जीवन नैया पार उतारूं तो उतारुं मैं कैसे 
राहों में चलना हुआ मेरा मुश्किल मंजिल तक पहुंचूं तो मैं कैसे 
उलझन में उलझा रहता मेरा मन उलझन से निकलूं तो मैं कैसे 
ना कोई संगी ना साथी हाले दिल किसको सुनाऊं और मैं कैसे 
रहती ही नहीं है सुध बुध हमें अब किस को बताऊं और मैं कैसे 
जिम्मेदारियां निभाने में जीवन गुजरता मन की करूं तो मैं कैसे 
दिल सुलगता है और आहें भी भरता है इसको मनाऊं तो मैं कैसे 
मुश्किल भरी राहों में हैं हरदम अंधेरे दिए गर जलाऊं तो मैं कैसे 
मन की उलझन हरपाल डंसती ही रहती है इससे बचूं तो मैं कैसे 
उलझनों के संग रहकर जीना हुआ मुश्किल अब जिऊं तो मैं कैसे
कोई तो बता दो,कोई तो सीखा दो,उलझनों से उबारों हमें चाहे जैसे। #मन_की_उलझन_team_alfaz #newchallenge

There is new challenge of poem/2 line/4 line in whatsapp group (link in bio)
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*मन की उलझन*

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