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एक उजड़े गुलशन पे खामूश परिंदा नग़्में गा रहा था۔

एक उजड़े गुलशन पे खामूश परिंदा नग़्में गा रहा था۔
कोई मुहब्बत तो नहीं उसके इर्द गिर्द۔
भला वो अपनी दिलकशी किसे सुना रहा था۔
शायद वो इस बार 'इब्राहिमी' 
ख़ुद हि मुहब्बत कर, ख़ुद हि को बहला रहा था۔
shadab AL ibrahimi. .........
एक उजड़े गुलशन पे खामूश परिंदा नग़्में गा रहा था۔
कोई मुहब्बत तो नहीं उसके इर्द गिर्द۔
भला वो अपनी दिलकशी किसे सुना रहा था۔
शायद वो इस बार 'इब्राहिमी' 
ख़ुद हि मुहब्बत कर, ख़ुद हि को बहला रहा था۔
shadab AL ibrahimi. .........