"सफ़र" उजली सुबह की धुंधली प्यास में निकल पड़ा था मैं उसकी तलाश में ढूंढ़ लिया सारे जहां में उसको, मगर वो मिली भी तो सिर्फ मेरी ही श्वास में पूछ लिया एक दिन मेरे रब ने भी मुझसे कर दूं तुम्हारे दिलों की बदली आस-पास में मैंने भी कह दिया वो मंजिल है मेरी बस बसा दें उसको मेरे सफ़र-ए-काश़ में मेरी जिंदगी भी वो मेरा प्यार भी वो कफ़न बनें वो मेरा मेरी ही लाश में दीपक कुमार 'निमेश' 'सफ़र का राह़गीर'