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उजाले का आत्मीय स्पर्श धुंध क्षितिज पे फैली थी

उजाले का आत्मीय स्पर्श 

धुंध क्षितिज पे फैली थी 
ओस पलकों में आकर समाई
धुंधली छाया पिघलकर नष्ट हुई 
कर्म की उच्च व्याख्या
कुदरत के
नियम स्वाध्याय ने सरलता से समझाई.
पंख फैलाकर उड़ गई नकारात्मकता
भास्कर की दिव्य छटा
चैतन्य से मिलने आई.

©Manisha Keshav
  ##उजाले का आत्मीय स्पर्श ##

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