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" कभी वो नहीं रहते, कभी हम नहीं रहते, अपनी बातों प

" कभी वो नहीं रहते, कभी हम नहीं रहते,
अपनी बातों पर , कायम नहीं रहते।

एक इस तरफ खींचे और एक उस तरफ खींचे,
ऐसे रिश्तों में धागे, हरदम नहीं रहते।

शब्द रहते हैं, मिज़ाज रहता है आजकल बातों में,
बस सच्चाई नहीं रहती, दम-खम नहीं रहते।

बड़े आराम से जाना है कि साल-ए-महोब्बत में,
पतझड़ भी होते हैं, सिर्फ सावन नहीं रहते।" .
" कभी वो नहीं रहते, कभी हम नहीं रहते,
अपनी बातों पर , कायम नहीं रहते।

एक इस तरफ खींचे और एक उस तरफ खींचे,
ऐसे रिश्तों में धागे, हरदम नहीं रहते।

शब्द रहते हैं, मिज़ाज रहता है आजकल बातों में,
बस सच्चाई नहीं रहती, दम-खम नहीं रहते।

बड़े आराम से जाना है कि साल-ए-महोब्बत में,
पतझड़ भी होते हैं, सिर्फ सावन नहीं रहते।" .