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"मृत्यु क्या है ? " मृत्यु एक ऐसा शब्द है, जिसका

"मृत्यु क्या है ?
"

 मृत्यु एक ऐसा शब्द है, जिसका नाम सुनकर लोग अपने आप में चिंतन करने लगते हैं, इस प्रकार के शब्द मनुष्य की जिंदगी का एक सत्य है, लेकिन मानव जाति इस तरह के शब्दों का मनन एक चिंता मात्र प्रक्रिया के लिए करती है।
 आज मानव ने मृत्यु के सत्य के मार्ग का चिंतन नहीं किया आज का मानव अपने शरीर अपनी बनावट पर गर्व करता है, इसी माया रूपी मानव शरीर से खुद की और अन्य प्रजातियों को अपनी और प्रभावित करता है, इस माया रुपी शरीर मात्र सिर्फ मिट्टी के समरूप है, लेकिन आज इस सत्य से मानव जाति अभिज्ञ हैं, मानव का शरीर अपने कर्मों के आधार पर अपनी स्थिति को सुनिश्चित करता है, जब मानव के अंतिम दिन नजदीक आते हैं, तब उसकी सारी आशाएं अभिलाषा मात्र एक पुतले के समान प्रतीत होती हैं। मानव का शरीर मृत्यु के पश्चात अपने पुण्य आत्मा को स्वर्ग लोक पर स्थित करता है, मानव के पुण्य आत्मा स्वर्ग लोक में अपने समस्त पुण्य-पाप  निछावर कर, दुबारा नए जीवन को धारण करती है।
समस्त जीव धारियों की स्थिति के आधार पर यह सुनिश्चित किया जाता है, कि जानवरों के द्वारा किया गया समस्त पूर्ण-पाप जानवरों को पापण्य नहीं बनाता हैं, मानव के द्वारा प्राप्त मानव शरीर एक सुगमकल, सरल आनुभिज्ञ, ज्ञानोतमञ मार्ग है, मानव अपनी इच्छाओं के कारण मानव पुनः मानव जीवन धारण करता है, मानव अपने अंतिम समय में भी काम- वासनाओं के मोहजाल से निकल नहीं पाता है, जिस कारण मानव को अंततः दुःखों का सामना करना पड़ता है, मानव का अद्भुत सुंदर शरीर मानव कल्पना मात्र रह गया है, मानव को अपने अंतिम समय में सिर्फ परमात्मा का ध्यान अवलोकन करना चाहिए, यद्यपि अगर मानव अन्य किसी से प्रेम के कारण संबंध बनाता है तो उसे उसी जाति का मार्गदर्शक अर्थात उसी कुल में जन्म मिल जाता है।
 अतः परमात्मा द्वारा बताए गए मृत्यु का सत्य मार्ग यह है कि जीवन-मृत्यु सदैव चलने वाली प्रक्रिया है,अतः मानव को अपने अंतिम समय में परमात्मा का ध्यान आकर्षित करना चाहिए।
                                
                                                "यही सत्य का मार्ग क्या है" #Mean_of_death
"मृत्यु क्या है ?
"

 मृत्यु एक ऐसा शब्द है, जिसका नाम सुनकर लोग अपने आप में चिंतन करने लगते हैं, इस प्रकार के शब्द मनुष्य की जिंदगी का एक सत्य है, लेकिन मानव जाति इस तरह के शब्दों का मनन एक चिंता मात्र प्रक्रिया के लिए करती है।
 आज मानव ने मृत्यु के सत्य के मार्ग का चिंतन नहीं किया आज का मानव अपने शरीर अपनी बनावट पर गर्व करता है, इसी माया रूपी मानव शरीर से खुद की और अन्य प्रजातियों को अपनी और प्रभावित करता है, इस माया रुपी शरीर मात्र सिर्फ मिट्टी के समरूप है, लेकिन आज इस सत्य से मानव जाति अभिज्ञ हैं, मानव का शरीर अपने कर्मों के आधार पर अपनी स्थिति को सुनिश्चित करता है, जब मानव के अंतिम दिन नजदीक आते हैं, तब उसकी सारी आशाएं अभिलाषा मात्र एक पुतले के समान प्रतीत होती हैं। मानव का शरीर मृत्यु के पश्चात अपने पुण्य आत्मा को स्वर्ग लोक पर स्थित करता है, मानव के पुण्य आत्मा स्वर्ग लोक में अपने समस्त पुण्य-पाप  निछावर कर, दुबारा नए जीवन को धारण करती है।
समस्त जीव धारियों की स्थिति के आधार पर यह सुनिश्चित किया जाता है, कि जानवरों के द्वारा किया गया समस्त पूर्ण-पाप जानवरों को पापण्य नहीं बनाता हैं, मानव के द्वारा प्राप्त मानव शरीर एक सुगमकल, सरल आनुभिज्ञ, ज्ञानोतमञ मार्ग है, मानव अपनी इच्छाओं के कारण मानव पुनः मानव जीवन धारण करता है, मानव अपने अंतिम समय में भी काम- वासनाओं के मोहजाल से निकल नहीं पाता है, जिस कारण मानव को अंततः दुःखों का सामना करना पड़ता है, मानव का अद्भुत सुंदर शरीर मानव कल्पना मात्र रह गया है, मानव को अपने अंतिम समय में सिर्फ परमात्मा का ध्यान अवलोकन करना चाहिए, यद्यपि अगर मानव अन्य किसी से प्रेम के कारण संबंध बनाता है तो उसे उसी जाति का मार्गदर्शक अर्थात उसी कुल में जन्म मिल जाता है।
 अतः परमात्मा द्वारा बताए गए मृत्यु का सत्य मार्ग यह है कि जीवन-मृत्यु सदैव चलने वाली प्रक्रिया है,अतः मानव को अपने अंतिम समय में परमात्मा का ध्यान आकर्षित करना चाहिए।
                                
                                                "यही सत्य का मार्ग क्या है" #Mean_of_death
kavivikramsingh2407

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