पता नहीं बद्दुआ किसकी लगी इश्क़ को, की इश्क़ को इश्क़ नहीं मिल रहा। सोचा डूबेंगे इसमें तो कहीं पे मिल जाएंगे, मग़र पता नहीं ये क्यों किनारा नहीं मिल रहा। बहते जा रहे हैं, पता नहीं कहाँ जा रहे हैं, सुकून छोड़ो बेचैनी में भी पता नहीं क्यों खलल पड़ रहा। कब्र खुद चुकी कबकी वो दूर तलक उस दरिया में, और मौत को पता नहीं हमारा पता क्यों नहीं मिल रहा। - गौतम पता नहीं बद्दुआ किसकी लगी... for more posts follow..👇 https://instagram.com/indergautam?igshid=oualzrigsjyo