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ना बचती है मागमा की चाह, ना कचोटता इस संसार की राह

ना बचती है मागमा की चाह,
ना कचोटता इस संसार की राह,
रूह रूह नाचता मदमस्त हो,
झंकार मेरे आशियाने को जगाता है,
बंद दरवाजे,
खिड़कियों की टकराहट से,
जब आती है हवाओ की आहट,
जल्दी जल्दी,
समेटता हूँ बिखराहट को,
ज़िन्दगी जब मैं तेरी आहट सुनता हूँ।

©Prashant Roy
  #WelcomLife #ज़िन्दगी की आहट Rakesh Srivastava nida gaTTubaba IshQपरस्त RUHI. PAYAL SINGH