गुनहगार (प्रकृति क्यों) शाम सुहानी, घटा गरजती, सूर्योदय से नित नया संसार बनी हूँ मैं। सब कुछ दिया तुझको हे मानव, बेवजह फिर क्यों भला गुनहगार बनी हूँ मैं।। तूने ही तो नोच डाला, झूमती मेरी डाली को। पल-पल तूने दूषित किया है, मेरी उषा की लाली को। हर रोज होकर मैं दुःखी, अबला नार बनी हूँ मैं। बेवजह फिर क्यों भला गुनहगार बनी हूँ मैं।। हर पानी गंगाजल सा था, उसको भी मैला कर डाला। मातृवत ना समझ सके, नित पुत्रवत तुमको पाला।। बार-बार तेरे हाथों शिकार बनी हूँ मैं। बेवजह फिर क्यों भला गुनहगार बनी हूँ मैं।। *पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएं* #earthday