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शीर्षक- मोहब्बत पे तरस खाई नहीं रचना प्रकार- गज़ल

शीर्षक- मोहब्बत पे तरस खाई नहीं
रचना प्रकार- गज़ल

दिल की बातें मेरी ज़ुबाँ पे कभी आई नहीं
तन्हाँ मैं रह गया जीवन में ख़ुशी छाई नहीं

ख़ुदा से की हजार  मिन्नतें बुला ले मुझको
बेरहम वो भी ठहरा क्यों  मौत बुलाई नहीं

सिला मिलता है यहाँ हर अच्छे इंसान को
दग़ा देना है रिवाज़ वफ़ा  की परछाई नहीं

लाख वादे करके क्यों लोग मुकर जाते हैं
रास्ता हक़ का रहा झूँठी क़सम खाई नहीं

बहुत से ख़्वाब मेरे दिल  ने संजो रखा था
टूटा ये इश्क़ मोहब्बत  में कमी  आई नहीं

ग़ुमशुदा हुआ इस अंजान शहर में "रहमत"
बेवफ़ा निकले मोहब्बत पे तरस खाई नहीं


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🖊लेखक:---
~शेख रहमत अली "बस्तवी"
Insta @ariyen_poet
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©Sheikh Rahmat Ali Bastvi #Dard_e_dil #Shikwa #sheikhrahmatalibastvi 
#Broken💔

#Dark
शीर्षक- मोहब्बत पे तरस खाई नहीं
रचना प्रकार- गज़ल

दिल की बातें मेरी ज़ुबाँ पे कभी आई नहीं
तन्हाँ मैं रह गया जीवन में ख़ुशी छाई नहीं

ख़ुदा से की हजार  मिन्नतें बुला ले मुझको
बेरहम वो भी ठहरा क्यों  मौत बुलाई नहीं

सिला मिलता है यहाँ हर अच्छे इंसान को
दग़ा देना है रिवाज़ वफ़ा  की परछाई नहीं

लाख वादे करके क्यों लोग मुकर जाते हैं
रास्ता हक़ का रहा झूँठी क़सम खाई नहीं

बहुत से ख़्वाब मेरे दिल  ने संजो रखा था
टूटा ये इश्क़ मोहब्बत  में कमी  आई नहीं

ग़ुमशुदा हुआ इस अंजान शहर में "रहमत"
बेवफ़ा निकले मोहब्बत पे तरस खाई नहीं


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🖊लेखक:---
~शेख रहमत अली "बस्तवी"
Insta @ariyen_poet
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©Sheikh Rahmat Ali Bastvi #Dard_e_dil #Shikwa #sheikhrahmatalibastvi 
#Broken💔

#Dark