" साधती हूं मन में जपती हूं ओंमकार मन में, मेरे मन में ह्रदय में बसते तुम, मेरी भोंहो के बिल्कुल बीच में विराजमान तुम कपाल में, नेकों-अनेकों रूप तुम्हारे, मुझे प्रेम है बस जटाधारी तुम्हारे रौद्र रूप से, मैं मोहित हूं हे ! नीलकंठ तुम्हारे गले में पड़े सर्प से, !"
मेरे मस्तक को चूम कर मुझे कृतार्थ करो हे ! शिव मेरे मेरी कोई तृष्णा नहीं, एक तुम मेरे, और मैं आपकी प्रकृति, !"💚
हाँ, मैं जप रही हूं नाम तुम्हारा, आँखें मूँद कर,
अपने आशीर्वाद से सृष्टि के हर जीव सजीव को कृतार्थ करो, !"