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मेरी कोई तृष्णा नहीं एक शिव मेरे ... और मैं आ

मेरी कोई तृष्णा नहीं 
एक शिव मेरे  
  ... और मैं आपकी प्रकृति... 

अंत तुम,  आरम्भ तुम 
आदि तुम, अनादि तुम 
राग तुम, बैराग तुम 
महेश तुम, ओंकार तुम 
जोगी तुम, ताँडव तुम 
आशुतोष तुम,उमाकांत तुम 
प्रलय तुम, मुक्तेश्वर तुम 
रूद्र तुम, अभयंकर तुम 
नागेश्वर तुम, विश्वेशवर तुम 
अमर तुम, मृत्युंजय तुम 

हे ! महाकाल, महादेव 
अर्धनारीश्वर तुम... 
                     
और मैं आपकी...अर्द्धांगिनी ! " साधती हूं मन में जपती हूं ओंमकार मन में,  मेरे मन में ह्रदय में बसते तुम, मेरी भोंहो के बिल्कुल बीच में विराजमान तुम कपाल में, नेकों-अनेकों रूप तुम्हारे,  मुझे प्रेम है बस जटाधारी तुम्हारे रौद्र रूप से,  मैं मोहित हूं हे ! नीलकंठ तुम्हारे गले में पड़े सर्प से, !"


मेरे मस्तक को चूम कर मुझे कृतार्थ करो हे ! शिव मेरे मेरी कोई तृष्णा नहीं, एक तुम मेरे,  और मैं आपकी प्रकृति, !"💚

हाँ, मैं जप रही हूं नाम तुम्हारा, आँखें मूँद कर,
अपने आशीर्वाद से सृष्टि के हर जीव सजीव को कृतार्थ करो, !"
मेरी कोई तृष्णा नहीं 
एक शिव मेरे  
  ... और मैं आपकी प्रकृति... 

अंत तुम,  आरम्भ तुम 
आदि तुम, अनादि तुम 
राग तुम, बैराग तुम 
महेश तुम, ओंकार तुम 
जोगी तुम, ताँडव तुम 
आशुतोष तुम,उमाकांत तुम 
प्रलय तुम, मुक्तेश्वर तुम 
रूद्र तुम, अभयंकर तुम 
नागेश्वर तुम, विश्वेशवर तुम 
अमर तुम, मृत्युंजय तुम 

हे ! महाकाल, महादेव 
अर्धनारीश्वर तुम... 
                     
और मैं आपकी...अर्द्धांगिनी ! " साधती हूं मन में जपती हूं ओंमकार मन में,  मेरे मन में ह्रदय में बसते तुम, मेरी भोंहो के बिल्कुल बीच में विराजमान तुम कपाल में, नेकों-अनेकों रूप तुम्हारे,  मुझे प्रेम है बस जटाधारी तुम्हारे रौद्र रूप से,  मैं मोहित हूं हे ! नीलकंठ तुम्हारे गले में पड़े सर्प से, !"


मेरे मस्तक को चूम कर मुझे कृतार्थ करो हे ! शिव मेरे मेरी कोई तृष्णा नहीं, एक तुम मेरे,  और मैं आपकी प्रकृति, !"💚

हाँ, मैं जप रही हूं नाम तुम्हारा, आँखें मूँद कर,
अपने आशीर्वाद से सृष्टि के हर जीव सजीव को कृतार्थ करो, !"
alpanabhardwaj6740

AB

New Creator

" साधती हूं मन में जपती हूं ओंमकार मन में, मेरे मन में ह्रदय में बसते तुम, मेरी भोंहो के बिल्कुल बीच में विराजमान तुम कपाल में, नेकों-अनेकों रूप तुम्हारे, मुझे प्रेम है बस जटाधारी तुम्हारे रौद्र रूप से, मैं मोहित हूं हे ! नीलकंठ तुम्हारे गले में पड़े सर्प से, !" मेरे मस्तक को चूम कर मुझे कृतार्थ करो हे ! शिव मेरे मेरी कोई तृष्णा नहीं, एक तुम मेरे, और मैं आपकी प्रकृति, !"💚 हाँ, मैं जप रही हूं नाम तुम्हारा, आँखें मूँद कर, अपने आशीर्वाद से सृष्टि के हर जीव सजीव को कृतार्थ करो, !"