एक झलक तुम्हारी पाने की खातिर, बेचैन मैं कितना रहती हूँ। कब होगा प्रिय मिलन हमारा, हर पल यही सोचती रहती हूँ।। साँझ सवेरे तुझको सोचूँ, पलकों पे बस तेरे ख़्वाब सजाती हूँ। हर एक आहट पर मैं, आकर खिड़की पास खड़ी मैं रहती हूँ।। चुपके चुपके तेरी राह निहारूँ, तस्वीर से तेरी बातें मैं करती हूँ। साहिब तेरा नाम लेकर ही मैं, हर पल सजती और सँवरती हूँ।। बिन तेरे वो मेरे हमदम, उदास होकर अधीर मैं कितना रहती हूँ आ जाते हो पास जब तुम मेरे, चेहरे पर लाली छाई रखती हूँ।। लब्ज़ों में मैं सुना ना सकूँ तुमको, प्यार तुझे मैं कितना करती हूँ बिसराई ज़माने की खुशियाँ सारी, बस तुझ पर ही मैं मरती हूँ। ताउम्र बनें ये प्यारा रिश्ता हमारा, बस यही दुवायें मैं करती हूँ। तन मन में है भेद कहाँ, अपनी प्रीति तुझे मैं अर्पित करती हूँ।। तुम मेरे मैं तेरी, अपना ये नेह जीवन तुझे समर्पित मैं करती हूँ। नही है होठों पर दूजा नाम कोई, बस तेरी ही बातें मैं करती हूँ।। हो लाख दुश्वारियाँ राहों पे, पर विश्वास तुझपर बनाए रखती हूँ। चुभ ना जाए पैरों पर काटें, राहों में मैं पुष्प बिछाए रखती हूँ। आ जाओ ना पास हमारे, बस तेरे ही सपने सजाएँ मैं रखती हूँ। ♥️ Challenge-955 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।