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जीना सिख ले तो, जिंदगी उत्सव है। सिर्फ जन्म ही



जीना  सिख ले तो, जिंदगी  उत्सव है।
सिर्फ जन्म ही नहीं, मौत भी उत्सव है।

इक ग़म में  छिपी है, हजारों  खुशियां, 
ढूंढ लेगा ग़म में खुशी,जिसे पहचान है।

दुखों की किसे कमी है, इस संसार में,
दर्द में मुस्कुरा दें, जांबाज वो इंसान है।

यहां कोई तन दुःखी, कोई मन दुःखी,
धन दुःखी, चिंता ग्रस्त सब परेशान है।

हंसने मुस्कराने में पारंगत है, कुछ लोग,
ग़म से खाली जग में,कौनसी मुस्कान है।

डॉ. भगवान सहाय मीना
बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान।

घोषणा - उक्त रचना मेरी स्वरचित पूर्णतः मौलिक है।

©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani
  #मुस्कराते सूरज से