ज़रा सा ऊँचा उठु तो आसमान को सर लगता है, साथ नही होते पापा, तो उजाले से भी डर लगता है। मेरी कामयाबी को कोई मेहनत कहे या किस्मत, मुझे तो ये सब आपकी दुआओं का असर लगता है। सीच कर आपने प्यार से, इस पौधे को बड़ा कर दिया, अपनी एड़ियां घिस कर मुझे पैरों पर खड़ा कर दिया। जो कह ना पाया होठो से आज हर बात लिख रहा हूँ घोलकर शब्दों में, मैं अपने जज़्बात लिख रहा हूँ। (पूरी कविता कैप्शन में) ज़रा सा ऊँचा उठु तो आसमान को सर लगता है, पापा साथ नही होते, तो उजाले से भी डर लगता है। मेरी कामयाबी को कोई मेहनत कहे या किस्मत, मुझे तो ये आपकी दुआओं का असर लगता है। प्यार से सींच कर, आपने इस पौधे को बड़ा कर दिया, घिस घिस कर अपनी एड़ियां, मुझे पैरों पर खड़ा कर दिया।