बहती नदी के, किनारे पर रूकी सी रेत, और ...उसमें, चलते पाँवों के, डूबते पद्चिन्ह उसके, उसकी छनकती, पाजेब के दम घोंट रही थी, उसके पाँव के, तलवों मे लिपटी रेत, घूमना चाहती है, पूरी धरती, वो..धरती, जो उसके हिस्से, मात्र रसोई से बिस्तर तक है, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #किंजल_अक्षिता बहती नदी के, किनारे पर रूकी सी रेत, और ...उसमें, चलते पाँवों के,