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वो एक मजदूर था मैंने भर पेट खाया और

              वो एक मजदूर था

मैंने भर पेट खाया और वो भुखा ही रह गया
मैं ‌चैन की‌ निंद सोया और वो सर पे तरपाल खोजते रह‌ गया
मैंने बड़ी इमारतें कागज पर बनाईं और वो बोझ ढोते रह गया
जहां ने मुझे सराहा पर वो अपना वजूद बनाते रह गया
नाम मेरा होता गया पर वो गुमनाम ही रह गया
जब आफ़त सर पर आयी तब मैं महफूज था पर वो अपनी 
हिफाजत ढूंढता रह गया
और एक दिन वो ‌चला गया और मैं अपने घर की खिड़की से 
उसे जातें देखता रह गया
खुदगर्जी में डूबा मैं इतने बरसों से, कभी न सोचा 
की मेरा सारा काम आखिर करता कौन था
जब ढोना पडा कपना बोझ खुदही से, 
तब याद आई उसकी ‌जो मेरे लिए अपना सबकुछ 
दाव‌ पर‌ लगाता था
अपनी नाकामी और बे ईल्मी से मैं मजबूर था
आज भी दर दर‌ की ठोकरें खाने वाला मेरा भाई, 
वो एक मजदूर था

फर्जी शायर #majdoor #majdurसाहित्यकक्ष #hindipoetry #hindipoem #urdupoetry #hindishayari #urdushayari #hindiwriters
              वो एक मजदूर था

मैंने भर पेट खाया और वो भुखा ही रह गया
मैं ‌चैन की‌ निंद सोया और वो सर पे तरपाल खोजते रह‌ गया
मैंने बड़ी इमारतें कागज पर बनाईं और वो बोझ ढोते रह गया
जहां ने मुझे सराहा पर वो अपना वजूद बनाते रह गया
नाम मेरा होता गया पर वो गुमनाम ही रह गया
जब आफ़त सर पर आयी तब मैं महफूज था पर वो अपनी 
हिफाजत ढूंढता रह गया
और एक दिन वो ‌चला गया और मैं अपने घर की खिड़की से 
उसे जातें देखता रह गया
खुदगर्जी में डूबा मैं इतने बरसों से, कभी न सोचा 
की मेरा सारा काम आखिर करता कौन था
जब ढोना पडा कपना बोझ खुदही से, 
तब याद आई उसकी ‌जो मेरे लिए अपना सबकुछ 
दाव‌ पर‌ लगाता था
अपनी नाकामी और बे ईल्मी से मैं मजबूर था
आज भी दर दर‌ की ठोकरें खाने वाला मेरा भाई, 
वो एक मजदूर था

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