आए थे तेरे शहर में कभी गैरों की तरह अपना लिए तुम्हें और उसे अपनों की तरह मौसम बदलता रहा पर इश्क़ हमारा वही पुराना था अपना कर तेरे इश्क़ और तेरे शहर को आजीवन बना लिया इसे ही अपनी पहचान और अपना घर— % & तेरे शहर तेरे शहर में आए है पर अजनबी नहीं है हम इश्क़ बदला है जरूर पर मौसम का रंग वही है। यादें अब भी तड़पाती है तन्हाइयो मे दिल मे भी तेरा घर है सनम भूल कैसे जाए तेरी मोहब्बत को तेरे नाम से तो अब भी पहचान है मेरे सनम।