अब धूप लगती है पहले इसी मे घर से निकला जाता था जो चुभती है जो पसीना बनके पहले इसी पसीने में नहाया जाता था सिर्फ डर होता था बड़ों का और कोई कमजोरी नहीं थी कोई रोक सके हमें बाहर जाने से ऐसी कोई पक्की डोरी नहीं थी उस बचपन की परछाइयों में मै झूम जाता हूं आया हैं जो तनाव जीवन में सब भूल जाता हूं फिर याद आता है कि वह दिन अब वापस नहीं आने केसे निकलेगी यह जिंदगी अब तो बस राम ही जाने ©Rahul Panghal #वे दिन Akash shri vastav