एक अनपढ़ इंसान ने कहा एक सवाल के जवाब में बिल्कुल बिंदास होकर, बिना शर्म के, बिना उलझन के, 'नहीं किया जा सकता।' फिर मैंने एक भले इंसान के कहने पर एक नया दरवाजा ताड़ा, उस इंसान को बुलाया जो पढ़ा-लिखा था, जानकार था, सो ताक़तवर था। उसने थोड़ा सोचकर, बिना शर्म के, बिना उलझन के, कहा, 'नहीं किया जा सकता।' तब मेरी समझ में आया, मुझे लगा कि दुनिया गोल है, और कुछ इस तरह पेचीदा कि यहाँ अनपढ़ से पढ़े-लिखे तक, नाकाम से होनहार तक, किसी के पास समाधान नहीं है। फिर भी हमें विश्व-गुरु होने की आन है। गोल दुनिया