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#माँ_मैं_तेरे_लिए_क्या_लिखूं माँ मैं तेरे लिए क्य

#माँ_मैं_तेरे_लिए_क्या_लिखूं

माँ मैं तेरे लिए क्या लिखूं,
इतना मुझे है ज्ञान कहाँ,
माँ मैं तो तेरी शक्ति का ,
कल्पना भी ना कर सकता हूँ
माँ तेरे आँचल में,
जन्नत समाया है
माँ तेरे चरणों ,
ईश्वर भी सर झुकाया है
माँ तेरे आशीष को,
भगवान भी ना टाल सके।
माँ जब तेरे लिए कुछ लिखने जाता हूं,
मुझे मेरी सोच अधूरी सी लगती है
मेरी कलम इतनी मजबुत नहीं माँ,
तेरे लिए ये कुछ लिख सके।
माँ बिना कहे सब समझने वाली,
तुम तो जादूगर हो,
घर को मन्दिर बनाने वाली ,
माँ तुम देवी हो।
माँ मैं तेरे लिए क्या लिखूं ,
इतनी मुझे है ज्ञान कहाँ
*मनोज गड़िया* #माँ
#माँ_मैं_तेरे_लिए_क्या_लिखूं

माँ मैं तेरे लिए क्या लिखूं,
इतना मुझे है ज्ञान कहाँ,
माँ मैं तो तेरी शक्ति का ,
कल्पना भी ना कर सकता हूँ
माँ तेरे आँचल में,
जन्नत समाया है
माँ तेरे चरणों ,
ईश्वर भी सर झुकाया है
माँ तेरे आशीष को,
भगवान भी ना टाल सके।
माँ जब तेरे लिए कुछ लिखने जाता हूं,
मुझे मेरी सोच अधूरी सी लगती है
मेरी कलम इतनी मजबुत नहीं माँ,
तेरे लिए ये कुछ लिख सके।
माँ बिना कहे सब समझने वाली,
तुम तो जादूगर हो,
घर को मन्दिर बनाने वाली ,
माँ तुम देवी हो।
माँ मैं तेरे लिए क्या लिखूं ,
इतनी मुझे है ज्ञान कहाँ
*मनोज गड़िया* #माँ
manojgariya5237

manoj gariya

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