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बिठा के मुझे वो मेहमानखाने में खुद भटक रहा है वो

बिठा के मुझे वो मेहमानखाने में 
खुद भटक रहा है वो  जमाने में।






मैं मौजूद हूँ भीतर वजूद में उसके
बाहर ढूँढ रहा वो मुझे अनजाने में। 

 आत्म वै परमात्म
बिठा के मुझे वो मेहमानखाने में 
खुद भटक रहा है वो  जमाने में।






मैं मौजूद हूँ भीतर वजूद में उसके
बाहर ढूँढ रहा वो मुझे अनजाने में। 

 आत्म वै परमात्म
ckjohny5867

CK JOHNY

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