हम कुछ जो कह दे तुमको हर बार बुरा लगता है तुम वार करो सौ बार फिर भी जायज़ होता है क्या जिस्म तुम्हारा ही है हमने पत्थर को सना है हर पीर तुम्हारी पीर है हममें भी दिल रखा है कोई भी खुदा तो नहीं इंसानी भेष मिले है दिल में ना जाने कितने दर्दो के दीप जले है वो हवस तुम्हारी सही है वो प्यार हमारा गलत है चेहरा भले एक है पर सौ सौ रूप दिखे है ये सारे बन्धन सिर्फ मेरे मुझको ऐसा लगता है चलने को राहें बहुत है पर मेरी राह गलत है ये कहने वालो सुन लो तुम्हारी नियत भी गलत है कभी सवाल कपड़ों पर तो कभी सवाल है चरित्र पर अपने दामन में दाग नहीं बस हममें ही सब गलत है सुन सुन कर ये बाते थकने कर मन रोने लगता है चलते हुए सड़क पर जो दामन जरा सा सरका एक एक नजर ने हमको बद्दियत से है परखा कोई जोर जमाने पर क्या दिखलाते हम साहिब हमको तो घर में ही अपनो से मिला है धोखा सब अपने है लेकिन महफूज़ कहीं नहीं लगता है #dev-ki