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वो अपने घर के दरीचों से झाँकता कम है तअल्लुका़त तो

वो अपने घर के दरीचों से झाँकता कम है
तअल्लुका़त तो अब भी हैं मगर राब्ता कम है

तुम उस खामोश तबीयत पे तंज़ मत करना
वो सोचता है बहुत और बोलता कम है

बिला सबब ही मियाँ तुम उदास रहते हो
तुम्हारे घर से तो मस्जिद का फ़ासिला कम है

फ़िज़ूल तेज़ हवाओं को दोष देता है
उसे चराग़ जलाने का हौसला कम है

मैं अपने बच्चों की ख़ातिर ही जान दे देता
मगर ग़रीब की जां का मुआवज़ा कम है #ghareeb ki #jaan ka #muaavzaa kam hai
वो अपने घर के दरीचों से झाँकता कम है
तअल्लुका़त तो अब भी हैं मगर राब्ता कम है

तुम उस खामोश तबीयत पे तंज़ मत करना
वो सोचता है बहुत और बोलता कम है

बिला सबब ही मियाँ तुम उदास रहते हो
तुम्हारे घर से तो मस्जिद का फ़ासिला कम है

फ़िज़ूल तेज़ हवाओं को दोष देता है
उसे चराग़ जलाने का हौसला कम है

मैं अपने बच्चों की ख़ातिर ही जान दे देता
मगर ग़रीब की जां का मुआवज़ा कम है #ghareeb ki #jaan ka #muaavzaa kam hai
maqusoodali2601

Maqusood Ali

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