वो अपने घर के दरीचों से झाँकता कम है तअल्लुका़त तो अब भी हैं मगर राब्ता कम है तुम उस खामोश तबीयत पे तंज़ मत करना वो सोचता है बहुत और बोलता कम है बिला सबब ही मियाँ तुम उदास रहते हो तुम्हारे घर से तो मस्जिद का फ़ासिला कम है फ़िज़ूल तेज़ हवाओं को दोष देता है उसे चराग़ जलाने का हौसला कम है मैं अपने बच्चों की ख़ातिर ही जान दे देता मगर ग़रीब की जां का मुआवज़ा कम है #ghareeb ki #jaan ka #muaavzaa kam hai