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पर्दे में रहने दो वाजिब निशाने लग जाते हैं नजर के

पर्दे में रहने दो वाजिब निशाने लग जाते हैं
नजर के खराब लोग नजरिए में दिख जाते हैं

दिन ढलने पर आऊंगा  कहते थे उजाले
मन के काले लोग  आँखों मे चुभ जाते हैं

हल्ला बस मैली हथेलियों का चारो तरफ
जहन के गन्दे लिबास में भी दिख जाते हैं

नादाँनियो में ही जिंदा रही सबकी खुशियां
क्यों संजीदगी में हम खुद को भूल जाते हैं
पर्दे में रहने दो वाजिब निशाने लग जाते हैं
नजर के खराब लोग नजरिए में दिख जाते हैं

दिन ढलने पर आऊंगा  कहते थे उजाले
मन के काले लोग  आँखों मे चुभ जाते हैं

हल्ला बस मैली हथेलियों का चारो तरफ
जहन के गन्दे लिबास में भी दिख जाते हैं

नादाँनियो में ही जिंदा रही सबकी खुशियां
क्यों संजीदगी में हम खुद को भूल जाते हैं
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Akash

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