दिल ये आवारगी में उतर जाए मुझे इस क़दर भी न चाहो सरेआम बात बिगड़ जाए मुझे इस क़दर भी न चाहो रखो कुछ तो ख़्याल बेपरवाह इन चश्म निगाहों का लोग देख लेंगे दिल-ए-हालात, मुझे इस क़दर भी न चाहो अलाहदा ज़ीस्त से न हो तुम बेआबरू शोखियों से न हो तुम 'सफ़र' ठहर गया देख तेरे लिए, मुझे इस क़दर भी न चाहो अलाहाद- Separate 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏 💫Collab with रचना का सार..📖 🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता:-126 में स्वागत करता है..🙏🙏