डूबते शहर में रंजीशें बहुत है मुल्क की सरहद पार कर चले हर लिबास खूनी रंगों का खेल यहां कोई ना जो अपना सा लगे कुदरत भी बेपरवाह हो गई मूंदी आंखों से जो उफ न करे गलियारों में हर मां बिलखती पूतों की लाशें पाने को लड़े किस बात की ये छींटाकशी रूप रंग जब एक ही लगे कौन सी लकीर खींची गई जिसे लांघें कोई ज़िंदा न बचे हर कोई उस ओर निहारे खड़े ऐसा बारूदों के बीच मूक पंछी भी मरे कड़वाहटें घुल घुल दफ्न हुई सीने में दुश्मनों की हर जगह पैदावार ही बढ़े _________पूजा गौतम ©Pooja Gautam #world #Religion #Boundations #stay_home_stay_safe